हमें खुली चर्चा की जरूरत है, जिससे दुनिया कम कार्बन वाली तकनीक की ओर बढ़े और साथ ही मुल्कों की अर्थव्यवस्था भी चौपट न हो। दुनिया की कार इंडस्ट्री आज ऐसे दौर से गुजर रही है, जिसका सामना उसने पहले कभी नहीं किया। इलेक्ट्रिक वाहन, इंटरनल कम्बस्चन यानी आईसी इंजन वाले वाहन की जगह लेने को तैयार हैं लेकिन इससे कार इंडस्ट्री के दिग्गजों की हालत भी अस्थिर हो रही है। अगर इतनी महत्वपूर्ण इंडस्ट्री, दूसरे देशों के नए महारथियों के साथ प्रतिस्पर्धा से ही इंकार करेगी, तो फिर विकसित देशों के हरित-बदलाव लाने के संकल्प का मतलब क्या रह जाएगा।
दरअसल मैं चीन के बारे में बात कर रही हूं, आज की तारीख में कच्चे माल, बैटरी तकनीक और अत्याधुनिक सस्ती इलेक्ट्रिक कारों के मामले में जिसका दबदबा है। चीन ने यह जानते हुए कि उसकी कार इंडस्ट्री पारंपरिक आईसी वाले इंजन के मामले में कभी प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएगी, जानबूझकर ई-वाहनों में निवेश किया। अब चूंकि दुनिया को जलवायु परिवर्तन की चुनौती का सामना करना है तो उसमें इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल, इस एजेंडे का हिस्सा है। यूरोपीय संघ ने कारों से कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम करने के लिए कठोर लक्ष्य तय किए हैं, उसने नियम बनाए हैं कि 2035 से केवल जीरो उत्सर्जन वाले वाहन ही बेचे जा सकेंगे।
- सुनीता नारायण (साभार : डाउन टू अर्थ)